राजधानी के कलेक्ट्रेट का हाल बेहाल ना पानी की सुविधा ना हीं महिलाओं के लिए शौचालय, परिसर में ही हो रहा है असामाजिक तत्वों का जमावड़ा।

शासन-प्रशासन स्वच्छ और स्वस्थ रायपुर की परिकल्पना को साकार करने में जुटा हुआ है करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं देश और विदेश में छत्तीसगढ़ सरकार अपने राज्य की धरोहर को विज्ञापन के स्वरूप मे बड़े पैमाने पर दिखाने की कोशिश कर रही है वहीं राजधानी रायपुर का सबसे पुराना कलेक्ट्रेट आज अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है बात सिर्फ इतनी से नहीं है । पुलिस अधीक्षक कार्यालय और जिलाधीश कार्यालय के परिसर में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा एक और बड़ी घटनाक्रम को अंजाम देने की शंका व्यक्त कर रहा है महत्वपूर्ण ऑफिस में जाने का एकमात्र रास्ता जोकि कलेक्ट्रेट गार्डन के नाम से मशहूर है वहां सूत्रों की माने तो देह व्यापार से लिप्त लोग दलाली करते हुए ही नजर आते हैं कलेक्ट्रेट में काम करने वाली महिलाओं ने नाम ना छापने पर बताया कि इस रास्ते से निकलना दूभर हो गया है लोग बहुत गंदे कमेंट करते हैं और एक असुरक्षा की भावना ऑफिस आने में ही लगने लगती है 40 से 50 कमरों का कलेक्ट्रेट में हम महिलाओं के लिए ना तो वैकल्पिक पानी की व्यवस्था है और ना स्वच्छ शौचालय की, मूलभूत सुविधाएं एक कर्मचारी को मिलनी चाहिए उसका संपूर्ण अभाव आप कलेक्ट्रेट में देख सकते हैं लेख वीर की टीम ने जब रायपुर कलेक्ट्रेट का मुआयना किया था पाया कि चारों ओर गंदगी का आलम ऐसा है कि व्यक्ति 5 मिनट खड़ा भी नहीं हो सकता दीवारों पर पान और गुटखा के छींटे ही दिखाई देते है । महत्वपूर्ण जिला अधिकारी बिल्डिंग मैं ना तो पानी की सुविधा है और ना ही बैठेंने की जबकि समस्त जिले का कार्य यहीं से ही क्रियान्वित किया जाता है ।

क्या शासन प्रशासन को इतनी बड़ी चूक नजर नहीं आती है महिलाओं की सुरक्षा की बात करने वाली सरकार को क्या महिलाओं को सुरक्षा देना प्राथमिकता में नहीं रखना चाहिए ?क्या किसी व्यक्ति को मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रखा जा सकता है ? ऐसे बहुत से प्रश्न है जिसका उत्तर शासन प्रशासन में बैठे व्यक्तियों को आवश्यक रूप से देना चाहिए और छत्तीसगढ़ के धरोहर और राजधानी का कलेक्ट्रेट को एक मिसाल के रूप में प्रदेश में विकसित किया जाना चाहिए ताकि प्रदेश भर के लोग जब रायपुर आए तो देखें कि वाकई सरकार की करनी और कथनी में कोई अंतर नहीं है

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