भगवान राम राजा थे फिर भी अहंकारी नहीं थे …माया के जंजाल मे फसे जीव को तारती है रामकथा..संत चिन्मय जी,,,,,,

कलयुग में मंथरा से बचकर रहने की जरूरत..संत चिन्मय जी

वो माता पिता महान है जिनके पुत्र भगवान के भक्त होते है….संत चिन्मय जी

धन का अहंकार नही करना चाहिए… संत चिन्मय जी

समता कॉलोनी हाउस चौबे कॉलोनी के मध्य खाटू श्याम मंदिर के प्रांगण में चल रहे श्री राम कथा की प्रेम गंगा के छठवें दिन पूज्य संत श्री चिन्मय दास जी महाराज के मुखारविंद से भक्तों ने श्री राम कथा का रसपान किया महाराज श्री ने राम कथा का रसपान कराते हुए बताया कि जीव जो है माया के जंजाल में फंसी हुई है और मैं और मेरा बस यही तक ही सीमित है इस दुनिया में आने के बाद प्रभु भक्ति कम हो जाती है और तेरा मेरा नहीं जीव जो है फंसा हुआ है ऐसे में भी भवसागर से पार नहीं हो सकती।
महाराज श्री ने राम कथा में आगे कहा कि सभी को कलयुग में मंथरा से बचकर रहने की जरूरत है मंत्रा वह है जो हमारे मन में विकार पैदा कर दे जो अच्छा है हम उसे बुरा समझने लगे जो सही है उसे गलत समझने लगे यही मंत्रा है और मंथरा से सभी को बच कर रहना चाहिए नहीं तो जिस दिन मंथरा आप पर हावी हुई उस दिन आप और आपका पूरा परिवार बिखर जाएगा।

 भगवान राम राजा थे फिर भी अहंकारी नहीं थे ...

संत श्री ने भगवान राम के वनवास की कथा बताते हुए कहा कि अपने पिता के वचन को पूरा करने और मां के आदेश के पालन करने के लिए भगवान राम ने 14 वर्षों के वनवास को स्वीकार किया और वन में जाकर अपने आप को राजा का पुत्र नहीं बल्कि एक सामान्य व्यक्ति बताया गंगा घाट पर भगवान राम
जगत के पति होकर भी गंगा किनारे नाविक से गंगा नदी पार कराने के लिए आग्रह किया कि भैया हमें गंगा पार करा दो ऐसे निर्मल पावन थे भगवान राम। इसलिए धन यदि ज्यादा मात्रा में आ जाए और मानव इस जगत में धन कमाकर एक बड़े पद में बैठ जाए तो उन्हें अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि धन आज है तो कल नहीं रहेगा सत्ता आज है तो कल नहीं रहेगा लेकिन व्यवहार जो आज बना लिए या व्यवहार जो आज निभा लिए वह जन्म जन्मांतर तक चलेगा यह प्रभु राम ने सिखाया और भगवान राम के आचरण से हमें सीखना चाहिए।।

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