छत्तीसगढ़ में ग्रामीण इलाके में ख़ासतौर पर युवा शराब व्यसन की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं, हमारा समाज और इसका भविष्य ख़ासा ख़तरे में हैं। और इससे कांग्रेस की अवसरवादी सरकार को अब कोई मतलब नहीं ऐसा प्रतीत होता है।
भूपेश बघेल को नाही छत्तीसगढ़ के लोगों की भलाई से मतलब है, ना ही युवाओं के प्रति उनकी कोई संवेदनशीलता है। एक तरफ़ वे रायपुर में फ़्लाइओवर के नीचे फ़ाल्स-सीलिंग लगवाने में पैसे बर्बाद कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ लाखों ग्रामीणों को प्रधानमंत्री आवास योजना से वंचित रखकर उनके सर से छत छीन ली है। उसी क्रूरता से वे अपने शराबबंदी के चुनावी वादे को भूलकर छत्तीसगढ़ को नशे का गढ़ बना चुके हैं। यह पूरे प्रदेश के समाज को खोखला करके अपनी तिजोरी भरने की ओछी राजनीति का ज्वलंत प्रमाण है।
ग़ौरतलब है कि गणेश शंकर मिश्रा आबकारी आयुक्त रह चुके हैं और शराबबंदी के लिए उन्होंने प्रत्येक ग्राम पंचायत में मद्यनिषेध की व्यूह्रचना बनाई थी जिससे प्रदेश के ग्रामों में पूर्णतः शराबबंदी करने का टारगेट रखा गया था। यह काफ़ी साहसिक कदम माना जाता है क्योंकि ब्यूरोक्रेसी के क्षेत्र में पहली बार ऐसा हो रहा था कि आबकारी विभाग के आला अधिकारी द्वारा स्वयं मद्यनिषेध हेतु कार्यक्रम बनाया गया और अभियान के तर्ज़ पर चलाया गया था। इस दौरान तत्कालीन आबकारी सचिव सह आयुक्त मिश्रा द्वारा प्रत्येक ग्राम पंचायत में भारत माता वाहिनी नामक महिला समूह की भी रचना की गई थी जो घर-घर जाकर लोगों को मद्यनिषेध हेतु प्रेरित करते थे और शराब कैसे परिवार का नाश करता है इस हेतु जागरूक करते थे। शुरुआती दौर में ही इस माध्यम से 350 ग्रामों में पूर्णतः मद्यनिषेध की गई थी। लेकिन उनके हटते ही यह पूरा कार्य ठंडे बस्ते में चला गया
मिश्रा की इस कार्य की समाज के बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा काफ़ी प्रशंसा करते हुए इसे अनुकरणीय बताया गया था। ग्रामीणों द्वारा भी इस सामाजिक पहल का लाभ महसूस किया गया था। सरकार बदलते ही ऐसे महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यक्रम बंद हो जाते हैं, यह राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना है।
मिश्रा का कहना है कि मदिरा-निषेध के लिए कदम अब नहीं उठाया गया तो बहुत देर हो जाएगी। समाज के हर वर्ग को इसमें अपना योगदान देना होगा।