छत्तीसगढ़ के राम,श्री राम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया और लव कुश का जन्म भी छत्तीसगढ़ में पढ़िए कब और कैसे हुआ ये सब ?

REPORT – DAVID KUMAR SAI 02 -07-2020- देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 5 अगस्त को श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास करेंगे, जिसके बाद राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो जाएगा। आपको बता दें कि प्रभु श्री राम और रामायण का प्रमुख भाग छत्तीसगढ़ से भी जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायका और प्रभु श्री राम का नॉनिहाल भी कहा जाता है,पौराणिक कथाओं और ग्रन्थों के अनुसार रावण वध के बाद प्रभु श्री राम का माता सीता से वियोग हो जाता है जिसके बाद श्री राम माता सीता को खोजते खोजते छत्तीसगढ़ आये इस दौरान प्रभु श्री राम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया,उन्ही स्थलों में से एक स्थल स्थित है बलौदाबाजार जिले में जिसे मातागढ़ तुरतुरिया कहा जाता है, आपको बता दें बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर घने जंगलों के बीच प्रकृति की गोद में स्थित है मातागढ़ तुरतुरिया,मातागढ़ तुरतुरिया को लेकर जनश्रुति है कि मातागढ़ तुरतुरिया में ही माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था जिससे लव से लवन और कुश से कसडोल नगर का नाम पड़ा,आज भी कसडोल और लवन नगर को लव कुश की नगरी के नाम से जाना जाता है,हम आपको ले चलते हैं उसी मातागढ़ तुरतुरिया में जहां माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था।

– छत्तीसगढ़ में प्रभु श्री राम ने 75 स्थलों का भ्रमण किया था जिसमें 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था,आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा उन्ही स्थानों का चयन करने के बाद श्री राम वनगमन पथ के रूप में विकास किया जाएगा और प्रथम चरण में आठ स्थलों का पर्यटन की दृष्टि से विकास के लिए चयन किया गया है, इन स्थलों में बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के माता गढ़ तुरतुरिया शामिल हैं, आपको बता दें कि वर्तमान में मातागढ़ तुरतुरिया वाल्मीकि आश्रम पहुंचने के लिए कच्चे पथरीले पहाड़ो के रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है जिसके बाद ही महर्षि वाल्मीकि आश्रम मातागढ़ तुरतुरिया पहुंचा जाता है।

– छत्तीसगढ़ में रामायणकालीन संस्कृति की झलक आज भी देखने को मिलती हैं। जिससे यह साबित तो होता है कि भगवान श्रीराम के अलावा माता सीता और लव-कुश का संबंध भी इसी प्रदेश से था। घने जंगलों के बीच स्थित माता गढ़ तुरतुरिया में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम इसी बात की याद दिलाता है कि रामायण काल में छत्तीसगढ़ का कितना महत्व रहा होगा। जनश्रुतियों के अनुसार त्रेतायुग में यहां महर्षि वाल्मीकी का आश्रम था और उन्होंने सीताजी को भगवान राम के त्याग करने के बाद आश्रय दिया था।

– सिरपुर-कसडोल मार्ग पर ठाकुरदिया नाम स्थान से सात किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल और पहाड़ों पर स्थित है तुरतुरिया। यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 113 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।इसी क्षेत्र में महादेव शिवलिंग भी मिलते हैं, जो 8 वीं शताब्दी के हैं। यहीं पर माता सीता और लव- कुश की एक प्रतिमा भी नजर आती है, जो 13-14 वीं शताब्दी की बताई जाती है।

तुरतुरिया नाम कैसे पड़ा – इस पर्यटन स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने के पीछे भी एक कहानी बताई जाती है। ग्रामीण बताते है कि कोई 200 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के एक संत कलचुरी कालीन राजधानी माने जाने वाले स्थल पहुचे। घने वनों से आच्छादित एवं पहाड़ियों से घिरे इस स्थल पर पहाड़ो का जल वर्षभर लगातार एक धार के रूप में बहता था। जिससे तुर-तुर की आवाजें निकलती थी। बताया जाता है कि इसी तुर-तुर की आवाजों के कारण संत ने इस स्थान का नाम तुरतुरिया रख दिया जो कि आज भी प्रचलन में है। यह स्थान रामचरित मानस में भी (त्रेतायुग) उल्लखित है,,,,लव कुश की मूर्ति-
वाल्मीकि आश्रम में आज भी हैं जिसमे लव -कुश की एक मूर्ति घोड़े को पकड़े हुए है। ये मूर्ति यहां खुदाई के दौरान मिली है। मंदिर के पुजारी पंडित रामबालक दास के अनुसार लव-कुश जिस घोड़े को पकड़े है वह अश्वमेघ का घोड़ा है।ये मूर्तियां ही भगवान राम एवं सीता के यहां प्रवास का प्रमाण माना जाता है,,तुरतुरिया में बालमदेही नदी- मन्दिरो के आसपास एक विशाल नदी है। इस नदी को बलमदेही नदी के रूप में जाना जाता है जानकारों के अनुसार यहाँ कोई कुँआरी कन्या यदि वर की कामना करती है तो उसे अच्छा वर शीघ्र ही मिल जाता है। इसकी इसी चमत्कारिक खासियत के कारण इसका नाम बलमदेही पड़ा अर्थात (बालम=पति, देहि=देने वाला) पड़ा।

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