नक्सलवाद के नाम पर बस्तर बेचना चाहती है सरकारे,सहनशीलता खत्म हुई तो आदिवासी लड़ेगे आरपार की लड़ाई उठने लगी अलग राज्य की मांग ।

प्रकाश ठाकुर ब्यरो कांकेर लखवीर डॉट कॉम ……

धधकते बस्तर को
अलग राज्य बनाने की उठने लगी मांग
कि……

नक्सलवाद के नाम पर बस्तर बेचना चाहती है सरकारे

सहनशीलता खत्म हुई तो आदिवासी लड़ेगे आरपार की लड़ाई

प्रकाश ठाकुर की रिपोर्ट 17-09-2020

दंतेवाडा:- कहा जाता है की बस्तर धधक रहा है एक दिन बस्तर जलकर राख हो जायेगा लेकिन बस्तर धधक नहीं रहा दरअसल में बस्तर के जंगलों में गुस्से का लावा उबल रहा है जो कभी भी बाहर निकला तो सच में उस लावे को रोक पाना मुश्किल होगा।
नक्सलवाद के नाम पर बस्तर में सरकार और प्रशासन ने जिस तरह से दमन नीति अख्तियार किया हुआ है उससे अब गरीब आदिवासी मुक्ति पाने के लिए अब कुछ भी करने को तैयार हो रहे है।
बस्तर के पहाड़ जंगलों में बेशुमार खनिज सम्पदा आदिवासियों के लिए जी जंजाल बन गया है सरकार उन तमाम खनिज संपदाओं को उद्योगपतियों को बेचने के लिए बेगुनाह आदिवासियों का कत्लेआम कर थोक के भाव में जेलों में जानवरों की तरह ठूसा रही है यहाँ तक की उनसे वो अधिकार भी छीन लिया गया है जिसमें उन्हें दमन के खिलाफ विरोध करने का भी अधिकार नहीं है।
सरकार की अनदेखी और पुलिस ने इस कदर जंगलों में आंतक मचाया हुआ है की आदिवासी ना चाहते हुए भी नक्सली विचारधारा से जुड़ने को मजबूर है बीते 04 दशकों से जिस तरह नक्सलवाद के नाम पे गरीब आदिवासियों की निर्ममता से हत्यायें कर आदिवासियों जेलों में बंद किया गया है हजारों लाखों आदिवासी परिवार सीमावर्ती राज्यों में खदेड़ा गया है की सैकड़ों हजारों गाँव बियाबान हो चुके है।
बस्तर के खनिज संपदाओं बेचने जाने के लिए नक्सलवाद के नाम पर आदिवासियों पे हो रहे अत्याचार पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री व आदिवासी नेता अरविन्द नेताम कहते है की बस्तर के आदिवासियों के गुस्से का लावा उबल रहा है लगातार सरकार और तमाम स्थानीय प्रशासन आदिवासियों के अधिकारों का दमनपूर्वक कुचल तानाशाह रवैया अख्तियार किये हुए है उन्हें जंगलों से खदेड़ने के नक्सली बता मारा जा रहा है जेल में बंद कर सुनवाई तकनहीं की जा रही है यहा तक की जेलों में सालों से बंद बेगुनाह आदिवासियों से उनके परिजनों को मुलाकात तक करने नहीं दिया जा रहा है कि उनके बंदी परिजनों की खैरियत कैसी है अगर उनके परिजन शांतिपूर्ण ढंग से विरोध जताते है तो पुलिस उन्हें भी नक्सली बता जेलों में बंद कर रही है । पुलिस के आलाधिकारी लक्ष्मणरेखा पार नहीं करने का वादा तो करते है लेकिन पुलिस के जवान आदिवासियों को उचकने का काम कर रही है बस्तर में हालत बहुत नाजुक है इसके लिए आदिवासी समाज को कुछ ना कुछ सोचना पड़ेगा ताकि उनकी तकलीफों को किसी मंच में सूना जा सके।
वे आगे भी कहते है ये वही आदिवासी है जो 200 सालों तक देश में राज करने वाले अंग्रेजों से लड़े है उन्होंने ये परवाह नहीं किया की वे रहेगे या नहीं अब सहनशीलता खत्म हुआ तो आदिवासियों का लावा फूटेगा देश में कोई ताकत नहीं जो उसे रोक पायेगी अब आदिवासी इस अत्याचार से निजात पाने के लिए परवाह किये बगैर आरपार की लड़ाई को तैयार है।
बस्तर के आदिवासियों पर हो रहे असहनीय अत्याचार पर आदिवासी नेत्री सोनी सोढी भी कहती है की नक्सलवाद के नाम पर अत्याचार का नंगा नाच चल रहा है बस्तर में नक्सलवाद के नाम पर मौजूद खनिज सम्पदाओं को उद्योगपतियों बेचने के लिए सरकार आदिवासियों को खत्म कर जंगलों से बेदखल करने में लगी है लेकिन बड़े शर्म की बात है की बस्तर के 11 आदिवासी मंत्री संसदीय सचिव और विधायक आदिवासीयों के इस दर्द पर खामोश है उनसे कुर्सी का मोह नहीं छुट रहा है आदिवासियों पे हो रहे अत्याचार पर अगर आदिवासी नेता विधानसभा लोकसभा में उठाते तो ये दिन नहीं आता की गरीब आदिवासी अपने दुधमुहे बच्चों को लेकर सडक पर उतरते आज आलम ऐसा है की विरोध करने वाले हर आदिवासी को सरकार और प्रशासन ने नक्सली करार दे गोली मार रही है…..वे आगे बताती है भूपेश सरकार ने सत्ता में आने से पहले आदिवासियों से वादा किया था की नक्सलवाद के नाम पर बंद बेगुनाह आदिवासियों को रिहा करेगी लेकिन ऐसा नही हुआ सरकार के वादा-खिलाफी पर शांति यात्रा करने पर आदिवासियों को पुलिसिया आतंक से नक्सली करार दिया जा रहा है अगर सरकार आदिवासियों को बेवकूफ समझती है तो ये सरकार की सबसे बड़ी भूल है। जिस दिन आदिवासी आरपार की सोच ले उस दिन सरकार को घुटने टेकने पड़ेगा लेकिन आज भी आदिवासी शांतिपूर्ण ढंग से अपना हक मांग रहे है अगर उनकी मांगे पुरी नहीं होती तो उनका हक दिलाने के लिए बस्तर को अलग राज्य बनाया आवश्यक हो जायेगा ताकि बस्तर के आदिवासियों हो रहे अत्याचार खत्म हो सके। उन्हें जल जंगल जमीन पर अधिकार मिल सके बस्तर में सदियों से खनिज सम्पदाओं और जंगलों की रक्षा कर रहे आदिवासियों को शान्ति जीने का हक मिल सके।
खैर बस्तर के आदिवासियों के किस्मत क्या है ये तो आने वाला वक्त के गर्भ में छिपा है लेकिन इतना तो तय है की जिन आदिवासियों ने सूर्यास्त नहीं होने वाले अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाये थे उसके ये लड़ाई कोई बड़ी बात नहीं चाहे इतिहास के पन्नों में क्यों ना दर्ज हो जाये।

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