अमित जोगी का नामांकन भरने के ऐलान से ही मरवाही की राजनीति तेज भाजपा और कांग्रेस में भी सुगबुगाहट, शक्ति प्रदर्शन का दौर जारी


दया सिंह
पुूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के मृत्यु के उपरांत रिक्त हुई मरवाही सीट के निर्वाचन की अधिसूचना जारी हो चुकी है और नामांकन भरने के लिए भी दो ही दिन शेष बचे हुए हैं ऐसे में राजनीतिक सरगर्मी भी तेज होती हुई नजर आ रही है और मरवाही क्षेत्र के लोगों के साथ साथ त्रिकोणीय संघर्ष में शामिल हुई तीनों पार्टियों के बीच में यह उत्सुकता बनी हुई है की विजय का सेहरा किसके सिर बंधेगा ।पार्टियों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चरम पर दिखाई दे रहा है। अगर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की बात करें तो नए जिले के घोषणा के साथ साथ मरवाही को नगर पंचायत केा दर्जा क्षेत्र वासियों को दिया गया है ।भूपेश सरकार जहां जोगी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए आतुर है वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के सुपुत्र अमित जोगी भी कहीं कमतर नजर नहीं आ रहे हैं उन्होंने अपने प्रचार में महिलाओं पर फोकस करते हुए अपने लिए वोट मांगना शुरू कर दिया है आशंका यह व्यक्त की जा रही थी कि जातिगत प्रकरण के तहत वह और उनका परिवार चुनाव में शिरकत नहीं कर पाएगा लेकिन सभी बातों को दरकिनार करते हुए 1 दिन पूर्व ही अमित जोगी ने 16 तारीख को नामांकन भरने की बात कह कर कांग्रेस और भाजपा की नींद उड़ा दी है यदि भाजपा और कांग्रेस की बात की जाए तो दोनों ही पार्टियों ने डॉक्टर प्रत्याशी खड़ा कर कर किस्मत बनाने का फैसला लिया है लेकिन क्षेत्र में अनदेखी की स्थिति लगातार दिखाई दे रही है दोनों ही पार्टियों के कर्मठ कार्यकर्ता जहां अपने आप को उपेक्षित मानकर अंदरूनी रूप से इसका विरोध कर रहे हैं वहीं पार्टी के शीर्ष नेता इसे परिवार की बात का कर इतने बड़े मुद्दे को जनता के बीच डालने का प्रयास कर रहे हैं अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अजीत जोगी के द्वारा खड़े किए गए क्षेत्र के कई नेता आज जोगी परिवार की ही बुराई कर रहे हैं और कह रहे हैं अजीत जोगी का अस्तित्व यहां समाप्त हो चुका है लोग अब समझने लगे हैं यदि सिर्फ कांग्रेस पार्टी की बात करें तो कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता जो कभी जोगी के इर्द-गिर्द चापलूसी करते नजर आते थे आज वह जोगी के लिए गलत बात करने में भी परहेज नहीं कर रहे हैं उनका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी और जोगी ने मिलकर मरवाही के लोगों को सिर्फ मूर्ख बनाया है कुछ भी काम उन्होंने नहीं किया है वहीं भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष विष्णु देव साय और प्रत्याशी डॉक्टर गंभीर के हाथों से जीत का परचम फिसलता नजर आ रहा है क्योंकि क्योंकि भाजपा जिस विकास की बात कर रही है उससे लोगों के बीच में उसका रुझान कहीं भी नजर नहीं आ रहा है अगर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस की बात करें तो बाहरी प्रत्याशी कहे जाने वाले कृष्णकांत ध्रुव जिनका सरपंचों ने और क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया था हालाकि आज वह चुप बैठ गए हैं लेकिन अंदरूनी कलह अभी भी थमने का नाम नहीं ले रही है और प्रत्याशी के इर्द-गिर्द रहने वाले अपने आप को बड़े नेता के रूप में मानने वाले कार्यकर्ता या यह कहें कि चापलूस और जिलाध्यक्ष की मनमानी के चलते होने वाली जीत रेत की तरह फिसलती नजर आ रही है देखने वाली बात यह होगी कि 3 तारीख को मतदान के दिन मोहर किसके नाम पर पढ़ती है जीत का सेहरा किसके सर बनता है यह बात तो अगले माह पता चल पाएगी लेकिन इस रोचक मुकाबले में किसी की भी जीत पक्की नहीं कही जा सकती। क्योंकि जनता सब जानती है और जनता क्या फैसला लेती है यह सिर्फ जनता के ऊपर ही निर्भर करता है पार्टी और पार्टी के प्रत्याशियों की सोच के ऊपर नहीं।

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