महामारी के बीच सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला शब्द इम्यून सिस्टम है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कहते हैं। इम्यून सिस्टम का काम शरीर को किसी बाहरी तत्व जैसे वायरस बैक्टीरिया परजीवी या बीमार करने वाले कारकों से बचाव करना होता है। इसके अलावा यह शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को संक्रमित कोशिकाओं से अलग करने का काम करता है। जिससे शरीर पर वायरस या किसी दूसरे हानिकारक तत्व का असर नहीं हो पाता है या यह कहें कि उसे हावी होने से पहले काफी समय तक रोकता है।
इम्यून सिस्टम को आमतौर पर दो भागों में विभाजित किया जाता है। हावर्ड यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. एंडरसन एना इस बारे में विस्तार से बता रही हैं।
प्राकृतिक इम्यूनिटी
शरीर के भाग जैसा त्वचा, पेट एसिड, एंजाइम, त्वचा का तेल, म्यूकस और खांसी रोग प्रतिरोधक तंत्र के रूप में काम करते हैं। इनका काम शरीर में घुसने की कोशिश करने वाले किसी बाहरी तत्व को रोकना होता है। इसके अलावा इन फेरौन और उसके इंटरल्युकिन-1 नाम के रसायन भी हानिकारक तत्व को खत्म करने का काम करते हैं, जिससे शरीर सुरक्षित रहता है। हां, यह जरूर है कि प्राकृतिक इम्यूनिटी से आप पूरी तरह सुरक्षित हैं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इम्यूनिटी का पहला चरण होता है। जिससे शरीर के हिस्से वायरस को भीतर जाने से रोकते हैं।
अडॉप्टिव इम्यूनिटी
शरीर के भीतर जब कोई वायरस बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर अपनी संख्या बढ़ाने की कोशिश करता है तो अडॉप्टिव इम्यूनिटी सक्रिय होती है। वायरस या बैक्टीरिया स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है तो शरीर उनके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाता है और उस तत्व को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू कर देता है। जब वायरस या खतरनाक वाहक खत्म हो जाता है तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उसे याद कर लेती है और जब वह कभी दोबारा हमला करता है तो उसे समय रहते निष्क्रिय कर देता है।
इम्यूनिटी के अहम भाग, जो हर तरह की बीमारी से बचाने में अहम भूमिका निभाती
किडनी जैसा दिखता पर आकार छोटा
लिंफनोड्स: छोटे आकार का होता है और कुछ हद तक किडनी जैसा दिखता है। इसका काम कोशिकाएं बनाना और उन्हें संरक्षित करना होता है, जो किसी संक्रमण या बीमारी से लड़ने का काम करती है, जो लिंफेटिक सिस्टम के अंतर्गत आता है। इसमें बोन मैरो, स्प्लीन, थायमस और अन्य तत्व होते हैं। लिंफनोड में द्रव होता है, जो कोशिकाओं को शरीर के अलग-अलग हिस्से में पहुंचाने का काम करता है। शरीर जब संगठनों से लड़ता है तो लिंफनोड का आकार बड़ा हो जाता है और अधिक से अधिक में हानिकारक तत्व को दूसरे भागों में फैलने से रोकता है।
खराब रक्त कोशिकाओं को खत्म करना
स्प्लीन: शरीर का सबसे बड़ा लिंफेटिक अंग होता है, जो पसलियों के नीचे और पेट के ऊपर बायीं और होता है। इससे सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो शरीर में मौजूद संक्रमण और बीमारियों से लड़ने के साथ ही रक्त का पैमाना भी संतुलित करता है। पुराने और खराब रक्त कोशिकाओं को निष्क्रिय भी करता है।
सफेद रक्त कोशिकाओं का उत्सर्जन
बोन मैरो: शरीर में मौजूद हड्डियों के बीच में पाए पाया जाने वाला पीला ऊतक बोन मैरो होता है इसका काम सफेद रक्त कोशिकाओं का उत्सर्जन करना होता है। हड्डियों के बीच में कुछ नरम ऊतक होते हैं। खासतौर पर हिप और थाई बोन में, जिसमें पूरी तरह परिपक्व नहीं हुई कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें स्टेम सेल्स कहते हैं।
हर बीमारी से बचाती है
लिंफोसाइट्स: यह छोटी सफेद रक्त कोशिकाएं होती है जो शरीर की बीमारी से बचाने में भूमिका निभाती है। इसमें पहली बी सेल्स जो एंटीबॉडीज बनाकर बैक्टीरिया और विषैले तत्वों को खत्म करती है। दूसरे की कोशिकाएं होती हैं जो संक्रमित कोशिकाएं और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को खत्म करती है। इसी तरह हेल्पर की कोशिकाएं होती हैं जो यह पता करती हैं कि कौन सी प्रतिरोधक क्षमता ने किस पैंथोजन के लिए काम करना शुरू किया है।
कोशिकाओं को परिपक्व बनाता है थायमस
यह छोटा सा ही कोशिकाओं को परिपक्व बनाता है। इसका काम एंटीबॉडी और संतुलन बनाना है। जिसके कारण मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होती है। विशेषज्ञों के अनुसार उम्र बढ़ाने के साथ यह छोटी होती हैं लेकिन अपना काम करती हैं।
बोन मैरो में बनता है ल्यूकोसाइट्स
यह एक कोशिका होती है जिसका निर्माण बोन मैरो में होता है और रक्त के साथ लिंफ टिशु में मिलती है। यह यूनिटी का एक हिस्सा है, जो संक्रमण और बीमारी की चपेट में आने पर शरीर को बचाती है।