रायपुर,,, सिंधी कॉन्सिल ऑफ इंडिया छत्तीसगढ़ इकाई के प्रदेश अध्यक्ष ललित जैसिंघ ने बताया लाल लोई बड़ी धूम धाम से बनाया गया इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिला एवम पुरष सदस्य गण ने अग्नि जलाकर उसके सामने पूजा अर्चना की गई नव वर्ष के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाते हैं – सिंधी तीज – त्यौहार । पर्व – त्यौहार किसी भी धर्म व संस्कृति की पहचान व धरोहर होते हैं । जिस वृहद श्रंखला में वर्ष के प्रारम्भ में ही सर्वप्रथम सिंधी पर्व – लाल लोई मनाया जाता है ।
मनुष्य का जन्म प्रकृति की गर्भ से हुआ है । प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है , या यूं कहें दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । लाल-लोई मुख्य रूप से प्रकृति के पंचमहाभूतों में से एक ‘ अग्नि ‘ का पूजन है ।
समाज के पंडित विकास शर्मा ने बताया वैदिक चिंतन में अग्नि ( ऊर्जा ) को वैश्वानर कहा गया है । वैश्वानर का अर्थ है विश्व को कार्य में संलग्न रखने वाली शक्ति । इस वैश्वानर अग्नि ( ऊर्जा ) को विश्व के निर्माण में मुख्य कारक माना गया है । जिस तरह सूर्य सृष्टि के देवता हैं उसी तरह अग्नि सृष्टि की पालक हैं। शायद इसीलिए हमारी पौराणिक परंपरा में अग्नि को उच्चकोटि का देवता स्वीकारा गया है। हमारे यहां हर कार्य में अग्नि का प्रयोग किया जाता है। जिसमें समाजिक-पर्व लाल लोई पर विशेष रूप से सूर्य देव व अग्नि देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है कि उनकी कृपा से फसल अच्छी होती है और आनी वाली फसल में कोई समस्या न हो।
लाल लोई एवं मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण यह सांस्कृतिक उत्सव तथा धार्मिक पर्व का एक अद्भुत समागम बन जाता है । लाल लोई के दिन जहां सूर्यास्त के बाद लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा – अर्चना कर लोई जलाई जाती है, वहीं अगले दिन सूर्य के उत्तरायण होते ही लोग मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है । इस प्रकार लाल लोई पर जलाई जाने वाली पवित्र अग्नि सूर्य के उत्तरायन होने का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है इस आयोजन में सिंधी कॉन्सिल ऑफ इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष ललित जैसिंघ,युवा विंग अध्यक्ष रवि ग्वालानी,शिव ग्वालानी,मोहन वार्ल्यानी, सन्नी कुकरेजा,नीरज मनवानी, नामदेव मंधान, जयराम थारानी, दीपक जैन,साक्षी इसरानी,संगीता थारानी,देवेश बजाज,सुनील वाधवा,राजकुमार भोई एवम अन्य।