खनन प्रभावित क्षेत्रों का पुनरुद्धार – एक राष्ट्रीय एवं वैश्विक अनिवार्यता और भारत की जी20 संबंधी प्राथमिकताएं – सी.पी. गोयल, महानिदेशक, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय


Piyush mishra/रायपुर
वैश्विक अर्थव्यवस्था और मानव विकास की दृष्टि से खनिज संसाधन का क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है। यह सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और पेरिस समझौते में अहम योगदान देता है। यह विभिन्न एसडीजी की उपलब्धियों को प्रभावित करते हुए उन्हें आगे बढ़ा सकता है। अब जबकि 2050 तक पूरे विश्व की जनसंख्या 7.8 बिलियन से बढ़कर 9.6 बिलियन हो जाने की संभावना है, इस क्षेत्र को प्रति व्यक्ति उपभोग में होने वाली वृद्धि को पूरा करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चलता है कि 2000 और 2019 के बीच संरक्षित क्षेत्रों में खनन की गतिविधियों में शत-प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऊर्जा संबंधी बदलावों और दुर्लभ मृदा धातुओं, जो रेडियोधर्मी पदार्थ छोड़ते हैं, के खनन की आवश्यकता के साथ परिस्थितियां और खराब होने की उम्मीद है। टिकाऊ खनन और खदानों को बंद करना अत्यंत वैश्विक महत्व का विषय है।
खनन की गतिविधियों ने ऊर्जा संबंधी मांग एवं आपूर्ति को संतुलित करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के निष्कर्षण को बढ़ावा दिया है। हालांकि, इससे वनों की कटाई, ऊपरी सतह की मिट्टी का हटना और कचरे की डंपिंग की समस्या पैदा हुई है, जो इकोसिस्टम से जुड़े कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। खनन से क्षतिग्रस्त हुई भूमि के जीर्णोद्धार के कार्य में हुई हालिया प्रगति दीर्घकालिक प्रबंधन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चयनात्मक वृक्षारोपण एवं मृदा योजक खनन व्यवसायों और स्थानीय समुदायों को आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय रूप से लाभान्वित करते हुए पुनरुद्धार की प्रक्रिया को बेहतर बना सकते हैं। विभिन्न अनुसंधान तनाव संबंधी सहनशीलता, जलवायु संबंधी दृढ़ता और स्थानीय इकोसिस्टम की मौलिकता जैसी वृक्षारोपण संबंधी विशेषताओं के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। अंतरराष्ट्रीय नीतिगत उद्देश्यों और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इकोसिस्टम का पुनरुद्धार करना आवश्यक है।
खनन और खदानों की अनियोजित बंदी के प्रभाव
खनन के महत्वपूर्ण पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव होते हैं, जिनमें वनों की कटाई, आवास हानि और खतरनाक रासायनिक प्रदूषण शामिल हैं। ग्रीनहाउस गैसों उत्सर्जन के कारण सामाजिक अव्यवस्था, आर्थिक बदलाव और जलवायु परिवर्तन भी हो सकता है। अनियोजित तरीके से खदानों के बंद होने से पर्यावरणीय क्षति एवं जल प्रदूषण तथा आर्थिक गिरावट जैसे सामाजिक व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं। इन चुनौतियों से निपटने हेतु जिम्मेदार कार्यप्रणालियों की आवश्यकता है जो स्थिरता, सामुदायिक कल्याण और बंदी की व्यापक योजनाओं को प्राथमिकता दें। भले ही वैश्विक स्तर पर विभिन्न विनियम और कानून पेश किए गए हैं,लेकिन इनके कार्यान्वयन के मामले में व्यापक भिन्नता है। खासकर, विकासशील देशों में। इसलिए, टिकाऊ कार्यप्रणालियों के लिए इन प्रभावों को समझना महत्वपूर्ण है।
खदानों का टिकाऊ जीर्णोद्धार
पर्यावरण एवं समुदायों पर खनन और खदानों के बंद होने के प्रभाव को कम करने के लिए खदानों के जीर्णोद्धार की एक स्थायी योजना तैयार करना महत्वपूर्ण है। ऐसी योजनाओं में खनन क्षेत्रों के प्रभावी पुनर्वास सुनिश्चित करने से संबंधित प्रमुख तत्व शामिल होते हैं। खनन के पहले के इकोसिस्टम का आधारभूत आकलन सूचित निर्णय लेने की दृष्टि से बुनियादी शर्त है। इकोलॉजी संबंधी एवं सामाजिक लक्ष्यों को स्थानीय आवश्यकताओं एवं संरक्षण के उद्देश्यों के अनुरूप होना चाहिए। कार्यान्वयन की अनुकूलित रणनीतियों में देशी प्रजातियों का पुनर्रोपण, आवास पुनर्निर्माण और मृदा स्थिरीकरण शामिल हैं। निगरानी व अनुकूल प्रबंधन प्रगति एवं दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करता है। समावेशी हितधारक सहभागिता सहयोग को बढ़ावा देती है। अंततः, यह योजनाएं स्थिरता की प्रक्रिया को ठोस बनाती हुई इकोलॉजी की सेहत, सामुदायिक कल्याण, निजी क्षेत्र की भागीदारी और पर्यावरणीय दृढ़ता के बीच की पारस्परिक अंतःक्रिया को स्वीकार करती हैं।
भारतीय परिदृश्य
खान मंत्रालय ने कोयला खदानों में टिकाऊ खनन को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय लागू किए हैं। खनिज संरक्षण और विकास नियम (एमसीडीआर) 2017 पर्यावरणीय प्रभाव तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु विभिन्न नियमों की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें ऊपरी सतह की मिट्टी को हटाने एवं उपयोग, अपशिष्ट चट्टानों के भंडारण और जमीन के कंपन, सतह के धंसाव, वायु प्रदूषण, विषाक्त तरल निर्वहन, शोर तथा वनस्पतियों के पुनर्स्थापन से संबंधित सावधानियां शामिल हैं। भारतीय खान ब्यूरो ने खनन कार्यों के दौरान स्थिरता संबंधी मूल्यांकन के लिए स्टार रेटिंग की एक प्रणाली भी शुरू की है। एमसीडीआर 2017 के नियम 35 के तहत, प्रत्येक पट्टेदार को कामकाज शुरू होने के बाद से तीन-सितारा रेटिंग प्राप्त करना आवश्यक है। मंत्रालय खनन पट्टों को हरित ऊर्जा का उत्पादन करने और उसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 293 खदानों के सर्वेक्षण से यह पता चला कि कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता लगभग 583 मेगावाट है। इन संयंत्रों में पवन और सौर ऊर्जा दोनों प्रकार के संयंत्र शामिल हैं।
भारत सरकार और राज्य के अधिकारियों ने खनन से जुड़ी टिकाऊ कार्यप्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। वर्ष 2020 में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने खनन हो चुके क्षेत्रों को वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के विकास की दृष्टि से उपयुक्त बनाने हेतु वहां फिर से घास लगाने का आदेश दिया। वर्ष 2014 में, कर्नाटक राज्य ने खनन-प्रभावित जिलों में ‘खनन प्रभाव क्षेत्रों के लिए व्यापक विकास योजना’ (सीईपीएमआईजेड) के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए कर्नाटक माइनिंग एनवायरमेंट रेस्टोरेशन कॉरपोरेशन (केएमईआरसी) की स्थापना की। चार जिलों के 466 गांवों को खनन प्रभावित घोषित किया गया है और सर्वोच्च न्यायालय ने उनके विकास के लिए 24,996.71 करोड़ रुपये की कार्य योजना को मंजूरी दे दी है। एनएलसी इंडिया, तमिलनाडु के नेवेली में खनन के बाद जीर्णोद्धार की गई भूमि पर 50 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना भी स्थापित कर रही है।
जी20 का महत्व
जी20 के भारत के शिखर सम्मेलन ने जी20 की वैश्विक स्तर की भूमि संबंधी पहल को मजबूत करने हेतु गांधीनगर कार्यान्वयन रोडमैप (जीआईआर) और गांधीनगर सूचना मंच (जीआईपी) का शुभारंभ किया है। इस रोडमैप का उद्देश्य खनन प्रभावित क्षेत्रों में इकोलॉजी के पुनर्स्थापन कार्य में तेजी लाने हेतु सभी भागीदार देशों के बीच सहयोग बढ़ाना है। जीआईआर-जीआईपी वैश्विक हितधारकों और विभिन्न देशों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करेगा, जो ज्ञान साझा करने, वित्तीय निवेश और तकनीकी एकत्रीकरण के संबंध में रणनीतिक इनपुट प्रदान करेगा। यह इस बात के लिए भी एक मानक तैयार करेगा कि कैसे वैश्विक स्तर पर की जाने वाली सहकारी कार्रवाइयां खनन-आधारित भूमि जीर्णोद्धार की गतिविधियों को बेहतर बना सकती हैं। इस पहल का उद्देश्य खनन उद्योगों को सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक स्थिरता संबंधी दिशानिर्देशों के अनुरूप बनाना है।

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