करू भात सौजन्य से
हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है शिव जी को पाने के लिए माता पार्वती ने यह व्रत किया था इसलिए पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत किया जाता है, इस दिन शिव पार्वती की पूजा की जाती है, और छत्तीसगढ़ में इसके 1 दिन पूर्व और बस्तर अंचल में 1-2 दिन पूर्व ही कड़ू भात खिलाने की परंपरा पुराने समय से परंपरा चली आ रही है। पुराने समय में लोगों ने यह परंपरा निश्चय ही किसी वैज्ञानिक पद्धति को अध्यात्म से जोड़ते हुए बनाई है जिसको कि आज आधुनिक दौर पर लोग फैशन के तौर पर अपनाने लगे हैं परंतु परंपरा का निर्वहन जारी है, और कड़ू भात क्यों खिलाया जाता है यह एक वैज्ञानिक कारण हो सकता है क्योंकि महिलाएं तीजा का निर्जला व्रत रखती है इसलिए 1 दिन पहले करेले की सब्जी या करेले की पत्तियां चबाने को कहा जाता है परंतु इसके पीछे क्या कारण है यह जानना आवश्यक है, क्योंकि करेले में पानी की मात्रा अधिक पाई जाती है इसलिए दूसरे दिन निर्जला उपवास रखने से पानी की कमी को पूरा किया जा सके और अधिक समय तक खाली पेट रहने से शर्करा की मात्रा बढ़ती है तथा करेले में शर्करा को खत्म करने की या उससे लड़ने की क्षमता अधिक होती है इसलिए भी करेले का सेवन 1 दिन पहले किया जाता है ताकि प्यास कम लगे। करेला पित्त नाशक भी होता है इसलिए करेले का सेवन किया जाता है क्योंकि कड़वाहट मुंह में होने से लार बनती है जिससे की प्यास कम लगती है तथा दूसरे दिन उपवास तोड़ने के बाद सर्वप्रथम खीरा खाया जाता है क्योंकि गले की नलियां सूख चुकी होती है इसलिए सर्वप्रथम खीरे का सेवन किया जाता है उसके बाद केला खाया जाता है फिर तिखूर/ सिंघाड़ा/ मंडिया इत्यादि इसलिए कि तिखूर/ मंडिया और सिंघाड़ा का तासीर ठंडा होता है और पौष्टिक होता है जो कि पेट की गर्मी को शांत कर देता हैआधुनिक दौर में यह एक फैशन हो चला है किंतु परंपराएं टूटी नहीं है और परंपरा टूटनी भी नहीं चाहिए । बहरहाल करेले का सेवन 1 दिन पहले करने के पीछे जो लॉजिक है वह उत्तम है।