आस्था का सैलाब बेमेतरा जिला के सण्डी गांव में है ,जहाँ हजारो श्रद्धलुओं की भीड़ रोज लगा रहता है ,और यहाँ माता के दर्शन कर मन वाँछित फल पाते है ….

– सिद्धि माता
नवरात्रि के नौ दिन दुर्गा के अगल अलग रूपो की पूजा की जाती है ,और वही देवी मंदिरों में श्रद्धालु का तांता लगा हुआ होता है , वही मनोकामना ज्योती भी प्रज्वलित करते है ।
ऐसा ही आस्था का सैलाब बेमेतरा जिला के सण्डी गांव में है ,जहाँ हजारो श्रद्धलुओं की भीड़ रोज लगा रहता है ,और यहाँ माता के दर्शन कर मन वाँछित फल पाते है ….
बहुत कम समय मे अपनी सिद्धि से सिद्ध पीठ बनी माता सिद्धि माता की महिमा ही निराली है ..
यहाँ आस पास गांव के सैकड़ो लोग आस्था में सराबोर होकर माता की सेवा में लगे रहते है ..

सिद्धि माता को पहले हिंगलाज माई के नाम से जाना जाता था ,जिसके बाद लोगो की मनोकामना सिद्ध करते करते माता हिंगलाज से सिद्धि माता बन गई ..

बेमेतरा जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माता सिद्धि माता की महिमा ही अलग है उन्होंने कम समय में बहुत प्रसिद्धि हासिल कर ली है …. सिद्धि माता का पता 1965 में चला 1995 में इनकी समिति का निर्माण हुआ आज यह भव्य मंदिर में विराजमान हो गई है ..
सिद्धि माता की उत्पत्ति की कथा भी अनोखी है , मंदिर के पुजारी ने बताया ग्राम सण्डी के जीवन साहू की विवाह 16 वर्ष की आयु में डंगनिया की 14 साल की युवती से हुआ था , जो कि बाल्यकाल में विवाह होने के कारण जीवन की पत्नी बार-बार मायके चली जाती थी जिससे जीवन बहुत परेशान रहता था …. जीवन आस्था से ओतप्रोत देवी देवताओं को मानने वाला व्यक्ति था , 1 दिन हिंगलाज माता ने उन्हें सपना दिया कि वे खेत में विराजमान हैं दूसरे दिन जब जीवन खेत जोतने के लिए गया तो वहां सच में माता विराजमान थी , किस को प्रणाम कर जीवन ने खेत जोतना प्रारंभ किया खेत जोतते समय वह हर भंवर कंप्लीट करने पर माता को प्रणाम करता ऐसे ही 7 बार हुआ तो आसपास खेतों में काम कर रहे किसान उसको देखकर कौतूहल हो गए कि जीवन कैसे पागलों की तरह हरकत कर रहा है …
क्यों किसी पत्थर को बार बार प्रणाम कर रहा है …
उसके बाद जीवन खेत जोतने का काम छोड़कर खेत में ही हल और बैल को खेत मे छोड़ कर घर चला आया घर आया तो देखा उसकी पत्नी को छोड़ने के लिए उसके ससुराल वाले लोग आए थे ।
जिसके बाद से पति पत्नी खुशी खुशी रहने लगे वही 2 महीने के बाद उनकी बहन जो ग्राम जामुन में रहती थी उनका फोन आया तो वहां चले गए वहां जाते हैं उन्हें सीमेंट की फैक्ट्री में बढ़िया सी नौकरी मिल गई . साल भर के अंदर ही उनके संतान की प्राप्ति हो गई …
जीवन को धन-धान्य सब मिलने पर उन्होंने अपने परिवार वालों के साथ आकर फागुन के बाद चैत्र के प्राम्भ में सिद्धि माता में बकरे की बलि दी और वहां भंडारा कराया …
जिसके बाद से हिंगलाज माई में बकरे की बलि और भंडारा किया उसके बाद से हिंगलाज माता सिद्धि माता बन गई .. और वह हर साल बलि की प्रथा लगातार 30 सालों तक यूं ही जारी रहा मगर माता खुले आसमान के नीचे ही रही ..
1995 में गांव के लोगों ने मिलकर समिति बनाई और माता के लिए भवन निर्माण के लिए राशि एकत्र करना शुरू किए ..
सिद्धि माता में 1997 में झोपड़ी बनाकर रखा गया और 1998 में पहली बार 7 ज्योति से वहां ज्योत प्रज्वलित किया गया …

फिर लोगों की आस्था जुड़ते गए और मन की मुराद पूरी होती गई तो श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ी और दानदाताओं के दान भी आने लगे । धीरे धीरे मंदिर बृहद रूप लेने लगे और आज एक वृहद मंदिर के रूप में सिद्धि माता विराजमान है …
यहां अब 10 हजार से ज्यादा ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है …
वहीं यहां आसपास गांव के डेढ़ सौ से ज्यादा लोग प्रतिदिन श्रमदान करते हैं … अभी भी मंदिर का निर्माण निरंतर जारी है और यह अपने भव्य रूप को लेते जा रहे हैं ….

माता के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि माता से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है,, और हर मनोकामना पूर्ण होती है …
सिद्धि माता में निसंतान दंपत्ति भी आते हैं बताया जाता है कि यहां जो भी सच्चे दिल से संतान के लिए मनोकामना ज्योति प्रज्वलित करते हैं , उनको 1 साल के भीतर ही संतान की प्राप्ति होती है ।
बाईट 1रामेश्वर जी अध्यक्ष मंदिर समिति संडी

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